News Agency : लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रदेश में कांग्रेसी खुद को फिर से दोराहे पर खड़ा महसूस कर रहे हैं। वे तय नहीं कर पा रहे कि आगे कैसी रणनीति अपनाई जाए। क्या लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल से नाता तोड़ अपनी अलग राह बनाई जाए या पहले जैसी स्थिति कायम रखी जाए? किसी अन्य क्षेत्रीय दल से तालमेल के लिए पहल की जाए या ‘एकला चलो’ की नीति पर अमल किया जाए? ये सवाल प्रदेश नेतृत्व से लेकर हर वरिष्ठ नेता के मन में उठ रहे हैं।प्रदेश में कांग्रेस (Congress) के अंदर तालमेल को लेकर भ्रम की स्थिति वर्ष 2013 से उस समय से कायम है जब राज्य के दौरे पर आए तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी कार से कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम की गेट तक छोड़ गए थे। तब से प्रदेश में कांग्रेसियों ने हमेशा जनता दल यूनाइटेड के प्रति नरम रुख दर्शाया है। पिछला विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने आरजेडी के अलावा जेडीयू के साथ मिलकर लड़ा था।2019 की लोकसभा चुनाव के बाद हार के कारणों की अबतक हुई दो बैठकों में कांग्रेसी नेता आरजेडी से नाता तोडऩे की वकालत कर चुके हैं। दो दिन पहले हुई कांग्रेस विधानमंडल दल की बैठक में भी यह बात फिर से अधिकांश सदस्यों ने दोहराई। मगर प्रदेश नेतृत्व ने यह कह अभी फिलहाल इन नेताओं को चुप कर रखा है कि अभी इस फैसले का वक्त नहीं आया है। इस संबंध में कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता सदानंद सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की और कहा कि कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनी रहे या एकला चलो की नीति अपनाए, इसका फैसला समय और परिस्थिति करेगी।कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने भी आरजेडी को लेकर बहुत उत्साह का इजहार कभी नहीं किया है। कांग्रेस अध्यक्ष पद का पदभार संभालने से पहले से ही उन्होंने आरजेडी के प्रति अपना रुख कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं से अलग रखा है। इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने मात्र एक बार आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ मंच शेयर किया।
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